रावण का जन्म कैसे हुआ था | Story of Ravana Birth

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रावण का जन्म कैसे हुआ था रावण के पूर्व जन्म की कथा क्या थी?

कैकय देश का राजा प्रतापभानु अत्यंत वीर, साहसी, धर्मपरायण, तेजस्वी और विद्वान था उसके शासन में प्रजा सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी प्रतापभानु का अरिमर्दन नामक एक भाई भी था जो उसी के समान श्रेष्ठ गुणों से संपन्न था दोनों भाइयों को नीतियुक्त मार्ग बताने तथा उसका अनुसरण करवाने का भार धर्मरूचि नामक परम विद्वान मंत्री पर था अपने नाम के अनुरूप धर्मरूचि की धर्म में अगाध श्रद्धा थी वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और सदैव उन्हीं के ध्यान में मग्न रहता था इस प्रकार तीन श्रेष्ठ पुरुषों की देखरेख में कैकय देश का शासन – कार्य नीति, धर्म और सदाचार के अनुसार चल रहा था।

पूर्व जन्म में रावण का परम शत्रु कौन था?

कैकय देश के पड़ोसी देश में सोमदत्त नामक एक राजा राज्य करता था वह बड़ा क्रूर, मायावी, दुष्ट और पापी व्यक्ति था भोग विलास में डूबे रहना उसका नित्य का कार्य था आरंभ से ही उसकी आंखों में कैकय देश का वैभव और संपन्नता खटक रही थी वह किसी भी तरह से उसे जीत लेना चाहता था किंतु बल और शक्ति में उसकी सेनाएँ कैकय देश की तुलना में कमजोर थी युद्ध में कैकय देश को जीतना असंभव था इसलिए उसने माया का सहारा लिया।

सोमदत्त ने क्या षड्यंत्र किया था?

एक दिन प्रतापभानु को समाचार मिला कि उसके राज्य में एक शक्तिशाली जंगली वराह ने आतंक मचा रखा है वह प्रतिदिन किसी न किसी को मार कर जंगल में भाग जाता है प्रजा को इस प्रकार आतंकित देख प्रतापभानु अत्यंत क्रोधित हो उठा उसने उस वराह को मारने का निश्चय कर लिया तदनंतर धनुष धारण करके वह उस स्थान पर जा पहुंचा जहाँ से वराह वन की ओर भागता था दो दिन प्रतीक्षा करने के बाद प्रतापभानु को वराह दिखाई दिया राजा ने अपना घोड़ा उसके पीछे लगा दिया वराह जान बचाता हुआ घने वन में घुस गया प्रतापभानु भी उसका पीछा करते हुए वन की ओर चल पड़ा आज वह किसी भी तरह वराह को मार डालना चाहता था इसी बीच वह अपने सैनिकों से बिछुड़ गया।

वराह अचानक से कहां चला गया था?

वन के बीचोबीच पहुंचकर वराह आंखों से ओझल हो गया और प्रतापभानु भूख प्यास से व्यथित होकर इधर-उधर भटकने लगा सहसा उसे एक कुटिया दिखाई दी कुटिया के प्रांगण में एक साधु हवन कर रहा था उसे देखकर जैसे प्रतापभानु की जान में जान आई उसने साधु के पास जाकर अपना परिचय दिया।

वह साधु कौन था?

साधु ने प्रतापभानु को खाने के लिए फल दिए तदनंतर वन में आने का कारण पूछा प्रतापभानु ने सारी घटना कह सुनाई तब साधु उपदेश देते हुए बोला राजन आपके प्रताप से कौन परिचित नहीं है आप की श्रेष्ठता का गुणगान तो देवलोक में भी किया जाता है प्रजा की संतुष्टि से ही स्पष्ट हो जाता है कि आप एक कुशल शासक हो आपके नेतृत्व में ही कैकय देश महानता के शिखर पर विराजमान है यह धरा भी आपको पाकर धन्य है राजन अब वह भयंकर वराह आपके राज्य की ओर कभी नहीं आएगा मैं अपने तप बल से उसे स्वयं ही मार डालूंगा आप निश्चिंत रहें।

साधु ने झूठा आश्वासन क्यों दिया?

साधु की बातें सुनकर प्रताप भानु गदगद होते हुए बोला मुनिवर आप जैसे साधुजन की कृपा के कारण ही मैं राज्य की उचित और न्याय प्रिय व्यवस्था करने में सक्षम राज्य हूँ राज्य के समस्त वैभव और संपनता के पीछे आपका ही आशीर्वाद है हे मुनिवर वराह को मार कर आप मेरी प्रजा पर उपकार करेंगे यद्यपि में आपके इस उपकार का ॠण कभी भी नहीं चुका सकता तथापि मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं।

वास्तविकता में वह साधु कौन था?

साधु हंसते हुए बोला राजन हम साधुओं की सेवा से कोई सरोकार नहीं है लेकिन यदि आप करना ही चाहते हैं तो अपने राज्य के समस्त ब्राह्मणों को सपरिवार भोजन करवा दें इससे उनके आशीर्वाद से आपके राज्य में सुख समृद्धि का वास रहेगा आपका यह कार्य सभी को सुख देने वाला होगा।

वह साधु प्रताप भानु को किस ओर ले जा रहा था?

जैसी आपकी आज्ञा मुनिवर अब आप पुरोहित बनाकर मेरे साथ चलने का कष्ट करें जिससे मैं अतिशीघ्र इस पुण्य कार्य को संपन्न कर सकूं प्रताप भानु ने कृतज्ञ शब्दों में कहा।

यह साधु प्रताप भानु को किस प्रकार भटक रहा था?

साधु थोड़ा सा बौखलाता हुआ बोल नहीं नहीं राजन सामाजिक बंधनों से विमुख हुए मुझे अनेक वर्ष हो गए हैं अब मैं किसी भी समारोह में सम्मिलित नहीं होता अतः मै आपका पुन्य कार्य में पुरोहित नहीं बन सकता परंतु आपकी इच्छा को देखते हुए मैं अपने एक योग्य शिष्य को आपका पुरोहित बनाकर आवश्य भेजूंगा वह आपके समस्त कार्य कुशलता पूर्वक संपन्न करवाएगा अब आप घर लौट जाएं ठीक तीन दिन के बाद मेरा शिष्य आपके पास पहुंच जाएगा।

साधु का यह शिष्य कौन था और इसका रहस्य क्या था?

इसके बाद साधु को प्रणाम कर प्रतापभानु वापस लौट गया तभी वह भयंकर वराह साधु के पास आ पहुंचा जिसका पीछा प्रतापभानु कर रहा था देखते ही देखते वराह ने एक विशालकाय रक्षस का रूप धारण कर लिया यह कालकेतु नामक राक्षस था जिसके उदंडी और अत्याचारी पुत्रों को प्रजा की रक्षा हेतु प्रतापभानु ने मार डाला था।

कालकेतु वराह क्यों बना था?

कालकेतु भयंकर अट्टहास करते हुए बोला तुमने आज अपनी बुद्धिमत्ता से श्रेष्ठ अभिनयकर्ता को भी मात कर दिया जिस प्रकार प्रतापभानु को तुमने भ्रमित किया है वह कभी भी नहीं जान सकेगा कि तुम कोई साधु नहीं बल्कि साधु के वेश में उसके सबसे बड़े शत्रु सोमदत्त हो।

सोमदत्त क्या षड्यंत्र रच रहा था?

साधु वेशधारी सोमदत्त भी अपने वास्तविक रूप में आ गया और हंसते हुए बोला कलकेतु इस योजना के पूर्ण होने में तुम्हारा योगदान सराहनीय है यदि तुम उसे यहां तक ना लाते तो हमारा षड्यंत्र कभी सफल नहीं होता अब केवल अंतिम कार्य रह गया है कलकेतु अब तुम शीघ्रता से ब्राह्मण बनकर प्रतापभानु के पास जाओ और योजना का अंतिम चरण भी पूर्ण कर दो।

प्रतापभानु कौन से षड्यंत्र में उलझता जा रहा था?

इसके बाद कलकेतु और सोमदत्त अपने-अपने स्थान की ओर चले गए उधर प्रतापभानु को ज्ञात नहीं था कि वह दो मायावी और पापी लोगों के बीच फंस चुका है वह तो महल में पहुंचते ही ब्राह्मण भोज की तैयारी में जुट गया उसने सभी ब्राह्मणों को सपरिवार भोजन पर आमंत्रित भी कर दिया।

आखिर ब्राह्मण भोज में क्या अनर्थ होने वाला था?

निश्चित दिन कालकेतु भी पुरोहित बनाकर राजा प्रतापभानु के पास जा पहुंचा प्रतापभानु ने उसका यथोचित आदर सत्कार किया भोजन से पूर्व कालकेतु भोजन के निरीक्षण का बहाना करके रसोई घर में जा पहुंचा और उसमें भोजन मे मांस मिला दिया जैसे ही ब्राह्मण भोजन करने बैठे अचानक एक आकाशवाणी हुई ठहरो यह भोजन आपके ग्रहण करने योग्य नहीं है इसमें मांस मिला हुआ है आकाशवाणी सुनते ही चारों ओर हाहाकार मच गया ब्राह्मण क्रोधित होकर अपने-अपने स्थान से उठ खड़े हुए और प्रताप भानु को श्राप देते हुए बोले अधर्मी पापी तूने मांस परोसकर हमारे धर्म को भ्रष्ट करने का प्रयास किया है तेरा या कृत्य राक्षसों के समान है अतः हम तुझे श्राप देते हैं कि तू परिवार सहित राक्षस योनि में जन्म ले इसके बाद क्रोधित ब्राह्मण वहां से चले गए।

आखिर ब्राह्मण भोज में मांस किसने मिलाया था?

यह सब इतनी तेजी से हुआ कि प्रतापभानु को कुछ समझने का अवसर ही नहीं मिला उसे जब होश आया तो उसने सर्वप्रथम पुरोहित बने कलकेतु को ढूंढना आरंभ किया लेकिन वह वहां से जा चुका था ब्राह्मणों का श्राप प्रतापभानु को व्याकुल करने लगा।

इस पूरे षडयंत्र के पीछे मुख्य उद्देश्य क्या था?

इधर जब सोमदत्त को श्राप की बात पता चली तो उसने उसी समय सेना लेकर के कैकय देश पर आक्रमण कर दिया ब्राह्मणों के श्राप ने प्रतापभानु को पहले ही निस्तेज कर दिया था इसी के चलते युद्ध में उसका पक्ष कमजोर पड़ता चला गया अंत में प्रतापभानु अपने भाई अरिमर्दन और मंत्री धर्मरूची के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ।

प्रतापभानु रावण कैसे बना?

श्राप के कारण अगले जन्म में प्रतापभानु ने विश्रवा ऋषि के घर जन्म लिया और रावण के नाम से विख्यात हुआ उसकी माता राक्षस कुल की थी प्रतापभानु के भाई अरिमर्दन ने कुंभकरण और धर्मरूचि ने विभीषण के रूप में जन्म लिया भगवान विष्णु का अनन्य भक्त होने के कारण धर्मरूचि राक्षस योनि में भी परम तपस्वी हुआ था।

रावण ने अपने जीवन में अधर्म क्यों किया?

केवल ब्राह्मणों के श्राप के कारण ही रावण अधर्म किया करता था क्योंकि उसे पता था कि वह भजन नहीं कर सकता वह कीर्तन नहीं कर सकता तो अधर्म के माध्यम से उसने एक युक्ति निकाली की इस माध्यम से वह भगवान के हाथों मारा जाएगा और उसकी मुक्ति हो जाएगी और अंत में यही हुआ कि रावण प्रभु श्रीराम जी के हाथों मारा गया और सदा के लिए परमात्मा के धाम में चला गया।

Shri Ram Ji

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